प्रस्तावना
किसी भी देश में सरकार का स्वरूप चाहे जो भी हो राजतंत्र, कुलीनतंत्र, तानाशाही, लोकतंत्र, जनता की समस्याओं के निदान के लिए नीतियां अवश्य बनानी पड़ती है। नीति निर्माण की प्रक्रिया शासन की प्रम्मुख क्रियाओं में से एक है। नीतियां ऐसा प्रामाणिक मार्गदर्शक हैं जो प्रबन्धकों को योजना बनाने, कानूनी आवश्यकताओं के अनुकूल कार्य करने तथा वाछित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता देती हैं। नीतियां प्रशासक को अपने क्रियाकलापों को निष्पादित करने के लिए एक निश्चित ढांचे के भीतर बनाये रखने में सहायता देती हैं। नीतियां उद्देश्यों को निश्चित अर्थ प्रदान करती हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि नीतियाँ वह है जो सरकार वास्तव में करती है, बजाय इसके कि सरकारें क्या करना चाहती हैं।
Public Policcy |
लोक नीति अर्थ एवं अभिप्राय
लोक नीति' का अर्थ समझने से पहले इनके दोनों घटकों "लोक" Public तथा "नीति" policy को समझना उपयुक्त होगा।
जैसा हम जानते हैं लोक प्रशासन का उद्भव राज्य द्वारा जनता के हितों की पूर्ति के लिए तथा लोक कल्याण व सेवा की दृष्टि से हुआ है नए कि किसी व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के लिए अर्थात इसमें 'लोक' शब्द से अभिप्राय सार्वजनिक या संपूर्ण जनता के हितों से संबंधित से है न की व्यक्तिगत हित से।
'नीति' शब्द से अभिप्राय उन कार्यक्रमों, गतिविधियों व योजनाओं की रूपरेखा से है जो किसी निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनाई जाती हैं।
लोक नीतियों का निर्माण एवं कार्यान्वयन जनसामान्य के हित के लिए तथा सरकार के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है।
लोक नीति सरकार के सामूहिक कार्यों का परिणाम होती है, अर्थात् यह सामूहिक रूप से जनप्रतिनिधियों (मन्त्रीगण और सांसद ) एवं प्रशासनिक अधिकारियों के समन्वित प्रयासों का परिणाम होती है।
लोक नीतियां सरकारी निकायों एवं सरकारी अधिकारियों द्वारा विकसित की जाती हैं, यद्यपि गैर सरकारी लोग और अभिकरण भी नीति निर्माण प्रक्रिया पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल सकते हैं या उसे प्रभावित कर सकते हैं।
लोक नीति स्वरूप में सकारात्मक या नकारात्मक दोनों हो सकती है। सकारात्मक रूप में इसमें किसी प्रश्न या समस्या के सम्बन्ध में किसी प्रकार की सरकारी कार्यवाही शामिल हो सकती है और नकारात्मक रूप में जहां सरकारी कार्यवाही की अपेक्षा की जाती है वहां कोई कार्यवाही न करने वाला सरकारी अधिकारियों का निर्णय शामिल हो सकता है।
लोक नीति अपने सकारात्मक रूप में नियमों पर आधारित होती है और इसलिए यह प्राधिकारिक होती है। इसके पीछे कानूनी स्वीकृति होती है और इसलिए नागरिकों पर बाध्यकारी होती है।
लोक नीति वह है जो सरकार वास्तव में करती है, बजाय इसके कि सरकारें क्या करना चाहती हैं।
लोक नीति, लोक हित की पूर्ति के लिए सरकार के कार्यों का योग है।
लोक नीति की परिभाषा।
(Public policy meaning and definition)
थामस, आर. डाई (Thomas R. Dye) – “लोक नीति वह है जिसके अंतर्गत या तो सरकार कुछ करती है या कुछ नहीं करना चाहती हैं।
राबर्ट आइस्टोन के अनुसार, "सरकारी इकाई का अपने आस-पास की चीजों से सम्बन्ध लोकनीति कहलाती है।"
रिचर्ड रोज के शब्दों में, “लोकनीति एक निर्णय नहीं है, बल्कि क्रिया की एक प्रक्रिया अथवा प्रतिरूप है।"
कार्ल जे. फ्रेडरिक के विचार में, “लोकनीति निश्चित वातावरण के अन्र्तगत एक व्यक्ति, समूह अथवा सरकार की क्रियाविधि की प्रस्तावित प्रक्रिया है, जिसमें अवसर या बाधाएं आती हैं। जिन्हें नीति एवं उद्देश्य की पूर्ति अथवा लक्ष्य की प्रक्रिया के प्रयत्न के प्रयुक्त करती है अथवा दूर करती है।
टैरी के अनुसार, “लोक नीति उस कार्यवाही की शाब्दिक, लिखित या विदित बुनियादी मार्गदर्शक है, जिसे प्रबन्धक अपनाता है तथा जिसका अनुगमन करता है।”
डिमाक कहते हैं, "नीतियाँ सजगता से निर्धारित आचरण के वे नियम हैं जो प्रशासकीय निर्णयों को मार्ग दिखाते हैं।" नीति एक ओर तो लक्ष्य या उद्देश्य से और दसरी ओर परिचालन के लिए उठाए गए
लोकनीति की प्रकृति अथवा सिद्धांत
(Nature of public policy)
एक नीति सामान्य या विशिष्ट, व्यापक या संकीर्ण, सहज या जटिल, सार्वजनिक या निजी, लिखित या अलिखित, स्पष्ट या धुंधली, संक्षिप्त या विस्तृत और गुणवत्ता सम्पन्न या संख्या सम्पन्न हो सकती है।
एक लोकनीति अपने स्वरूप में सकारात्मक भी हो सकती हैं और नकारात्मक। अपने सकारात्मक स्वरूप में किसी खास समस्या से निपटने के लिए सरकार की किसी गुप्त कार्यवाही से जुड़ी रह सकती है, जिसके तहत उन विषयों पर कार्यवाही नहीं की जाती जिन पर सरकारी आदेश की जरूरत होती है।और नकारात्मक रूप में जहां सरकारी कार्यवाही की अपेक्षा की जाती है वहां कोई कार्यवाही न करने वाला सरकारी अधिकारियों का निर्णय शामिल हो सकता है।
लोकनीति की एक विधिसम्मत गुणवत्ता होती है, जिसे नागरिक एक कानून के रूप में स्वीकार करते हैं। उदाहरणस्वरूप करों का अदा करना जरूरी है, नहीं तो व्यक्ति को जुर्माना देना पड़ सकता है या जेल जाना पड़ सकता है। लोक नीतियों की यह विधिसम्मत गुणवत्ता उन्हें निजी संगठनों से भिन्नता प्रदान करती है ।
लोक नीति की विशेषताएं
(Characteristics of public policy)
लोक नीति निर्माण की निम्नांकित विशेषताएं हैं
सरकार नीतियों के माध्यम से अपनी इच्छा को व्यावहारिक रूप देती है। नीतियों के माध्यम से हमें शासन व्यवस्था की पहचान होती है। यदि कोई सरकार उदारवादी नीतियों का निर्माण करेगी तो हम कहेंगे यह उदारवादी सरकार या उदारवादी शासन व्यवस्था है। ठीक इसी प्रकार जो सरकार समाजवादी नीतियों का निर्माण करेगी उसे हम कहेंगे कि वो समाजवादी सरकार है।
लोक नीति एक गतिशील प्रक्रिया है जो आवश्यकतानुसार परिवर्तित होती रहती है। जैसी आवश्यकता होती है यह अपना स्वरूप बदल लेती है।
लोक नीति लोकहित पर आधारित होती है। इसलिए सदैव लोकहित को ध्यान में रखकर बनायी जाती है। लोक नीति का उद्देश्य ही लोक कल्याण है।
लोक नीति भविष्य उन्मुख होती है। लोक नीति वर्तमान की अपेक्षा भविष्य पर अधिक केन्द्रित होती है तथा भविष्य से जुड़े उद्देश्य को पूर्ण करती है। लोक नीति दिशा निर्देश रेखांकित करती है।
लोक नीति दिशा- निर्देश देती है ताकि समस्त प्रशासन इन निर्देशों का पालन कर लोक कल्याण के उद्देश्य को पूरा करे।
लोक नीति विभिन्न संगठनों सरकारी एवं गैर सरकारी के सहयोग का परिणाम है। लोक नीति निर्माण में केवल सरकारी ही नहीं बल्कि गैर सरकारी संगठन भी भागीदार होते हैं
लोक नीति परिणामोन्मुख होती है। लोक नीति सदैव इस तरह की बनायी जाती है जो परिणाम की पूर्ति करे।
लोक नीति का महत्व
(Significance of public policy)
लोक नीति को किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है लोक नीति के महत्व को निम्नलिखित बंधुओं द्वारा समझा जा सकता है :-
थामस, आर. डाई (Thomas R Dey) लोक नीति के अध्ययन से हमें इसके सृजन, विकास तथा परिणाम के विषय में जानकारी मिलती है जिससे हमारी राजनीति व्यवस्था व समाज के विषय में समझ विकसित होती है।
लोक नीति का राजनीतिक तौर पर बहुत महत्व होता है किसी राज्य के लक्ष्य प्राप्ति के लिए लोक नीति का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
लोकनीति प्राथमिक तौर पर जनता तथा उनके समस्याओं से संबंधित होता है तथा लोक नीति के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।
लोक नीति का उद्देश्य ऐसी नीतियों का निर्माण करना है जिससे समाज में लोगो के जीवन स्तर में वृद्धि व विकास हो।
देश के विकास में लोक नीति की भूमिका; किसी देश के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए सुनियोजित लोक नीति का होना बहुत महत्वपूर्ण है।
लोक नीति निर्माण पर प्रभावित करने वाले तत्व
निम्नलिखित घटकों का प्रभाव नीति निर्माण पर देखा जा सकता है
विचारधारा: जैसी विचारधारा के लोग सरकार में होते हैं वैसी ही विचारधारा का लोकनीति पर विचार दृष्टिगोचर होता है । भारत में अनेकों विचारधारा से जुड़े राजनीतिक दल हैं जो अपनी-अपनी विचारधारा से कार्यरत् हैं लेकिन जब गठबंधन होता है तो वह कुछ कॉमन मुद्दों पर एकत्रित होकर नीतियां बनाने का प्रयास करते हैं
जनमतः जनमत का दबाव भी लोक नीति निर्माण में अपनी भूमिका अदा करता है। चाहे वह पर्यावरण का मुद्दा या अधिकार का मुद्दा या शोषण का मुद्दा हो आदि। नीति निर्माण में जनता की सक्रियता और प्रभाव तभी संभव होता है, जब जनता जागरूक है
सरकार की छविः प्रायः सभी सरकारें जनता में अपनी छवि को लेकर सचेत रहती हैं। कई बार सरकार नीति को इस प्रकार बनाती है कि उसकी छवि खराब न हो
बाहरी दबाव: सरकार की नीतियों पर बाहरी देशों का या अंतर्राष्ट्रीय दबाव भी कार्य करता है। जैसे 90 के दशक में निजीकरण एवं उदारीकरण आदि को लागू करने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक का दबाव था।
अन्य कारकः आपदा, मनोवैज्ञानिक, व्यक्तिगत आदि का प्रभाव भी नीतियों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
लोकनीति के प्रकार
लोक नीतियां विभिन्न प्रकार की होती हैं। मुख्यतः इनके प्रकारों का भेद अलग अलग मुद्दों पर आधारित है।
1. तात्विक अथवा सारगत नीतियां- तात्विक नीतियों का विकास समाज की आवश्यकतानुसार होता है। इन नीतियों का सूत्रीकरण संविधान के स्वरूप को ध्यान में रखते हुए सामाजिक, आर्थिक कठिनाइयों को एवं समाज की नैतिक मांग को ध्यान में रखते होता है। ये नीतियां किसी वर्ग विशेष से सम्बन्धित न होकर पूरे समाज के हुए विकास से सम्बन्धित होती हैं। शिक्षा का प्रबन्ध एवं रोजगार के अवसर, आर्थिक स्थिरीकरण, विधि और व्यवस्था बनाये रखना आदि इसी का प्रमाण है।
2. नियन्त्रक नीतियां- तात्विक नीतियों का सम्बन्ध व्यापार, व्यवसाय, सुरक्षा उपाय, जनोपयोगी आदि के नियन्त्रण से है। इस प्रकार का नियन्त्रण सरकार की ओर से काम करने वाली स्वतंत्र संस्थायें करती हैं। भारत में जीवन बीमा निगम, भारतीय रिजर्व बैंक, हिन्दुस्तान इस्पात, राज्य विद्युत परिषद, राज्य यातायात निगम, राज्य वित्तीय निगम आदि संस्था नियन्त्रक क्रियाओं में जुटी हुई हैं। इन सेवाओं से सम्बन्धित सरकार द्वारा बनायी गई नीतियां वह संस्थाएं हैं जो यह सेवाएं प्रदान करती हैं, नियंत्रक नीतियां कहलाती हैं।
3. वितरक नीतियां- वितरक नीतियां सम्पूर्ण समाज के लिए न होकर केवल समाज के विशिष्ट वर्गों के लिए होती है। ये माल के अनुदान के क्षेत्र में लोक कल्याण अथवा स्वास्थ्य सेवाओं आदि के क्षेत्र में हो सकती है। जैसे- प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, खाद्य सहायता, बालवाड़ी पोशाहार, इन्दिरा महिला योजना, टीका शिविर आदि।
4. पुन: वितरक नीतियां- इनका सम्बन्ध नीतियों की पुनः व्यवस्था से है जो मूल सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन लाने से सम्बन्धित होती है। कुछ कल्याण सेवाओं एवं सार्वजनिक माल का वितरण समाज के विशिष्ट वर्गों से बेमेल होता है। अतः ऐसी सेवाओं एवं माल को पुनः वितरक नीतियों द्वारा सीमित किया जाता है।
5. पूंजीकरण नीतियाँ - पूंजीकरण नीति के अन्तर्गत राज्यों एवं स्थानीय सरकारों को यूनियन सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त होती है और यदि आवश्यकता हो तो यह सहायता अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भी प्रदान की जा सकती है।
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