परिचय
शासन की प्रकृति को समझने के लिए न केवल एक शासन के मापदंडों की बदलती हुई प्रकृति की विशेषता के कारण को समझना बल्कि कई और घटकों की उपस्थिति के कारणों को भी समझना एक बड़ी चनौती रही है। फिर भी, शासन की प्रकति को समझना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस बात को समझने में मार्गदर्शन प्रदान करता है कि किस प्रकार से सरकार कार्य करती है एवं एक उत्तम शासन की सुविधा को प्रदान करती है और किस प्रकार से मानवाधिकारों को सुनिश्चित करती है।
राज्य को एक निश्चित भू-भाग, संप्रभुता और सरकार के साथ एक संगठित राजनीतिक समुदाय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जबकि सरकार वह एजेंसी होती है जो कि राज्य की ओर से कार्य करती है। राजनीतिक शासन को “राज्य व सरकारी भूमिकाओं और प्रक्रियाओं की औपचारिक तथा अनौपचारिक संरचना” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है |
राजनीतिक शासन की प्रकृति का अध्ययन : चुनौतियाँ एवं उद्देश्य
चौथी शताब्दी ई.पू. में प्लेटो और अरस्तू जैसे विचारकों ने शासन के अध्ययन की परंपरा में अपना बहमूल्य योगदान दिया। आधुनिक राज्य और वेस्टफेलियन राज्य के उदय ने कई बदलाव पेश किए हैं कि हम एक आधुनिक राज्य को किस प्रकार से देखते हैं। उदार लोकतांत्रिक राज्यों का उदय, संविधान और अभिव्यक्ति एवं भाषण की स्वतंत्रता, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की विस्तृत श्रेणी जैसे कारकों ने बहुत कुछ किया है। इसने एक देश के शासन की प्रकृति को आकार प्रदान किया।
वर्गीकरण का आधार :
शासन की प्रकृति को समझने के लिए जिन दो प्रमुख कारकों का उपयोग किया गया है, वे हैं- शासन करने वाले लोगों की संख्या (जो कि शासन कर रहे हैं) और दूसरा, शासक निकाय शासितों पर सत्ता का प्रयोग किस प्रकार करता है। दूसरे मानदंड के मामले में, शक्ति ही वर्गीकरण का एक प्रमुख आधार रही है तथा इन संबंधों की प्रकृति की जाँच करने के लिए एक मानदंड होता है जो कि राज्य के राजनीतिक संस्थानों से संबंधित हो सकता है। यह केंद्र एवं इकाइयों के बीच के साझा संबंधों की प्रकृति को निर्धारित करती है कि राज्य एकात्मक या संघीय है या नहीं। इसके अलावा, इसमें शासन को कार्यपालिका और विधायिका के बीच संबंधों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, इसलिए यह सरकार संसदीय या अध्यक्षीय रूप में हो सकती है।
संख्या के आधार पर शासन का किस तरह से वर्गीकरण किया जा सकता है।
शासन का प्रकार शासन करने वालों की संख्या और शासन की प्रकृति
राजशाही
यह एक व्यक्ति का नियम है। इस प्रकार के शासन में राजा ही राज्य का मुखिया होता है। ऐसे शासनों की प्रकृति संवैधानिक, प्रतीकात्मक से लेकर पूर्ण राजशाही तक भिन्न हो सकती है (उदाहरण के तौर पर नेपाल, जॉर्डन व मध्ययुगीन यूरोप, ब्रिटेन इसमें शामिल हो सकते हैं)
तानाशाही
तानाशाही के शासन तहत पूरी शक्ति एक व्यक्ति के पास होती है। वह अपनी मर्जी से जो शक्तियां वह इस्तेमाल करता है, और उसका हर आदेश कानून के समान ही होता है। ऐसे व्यक्ति ने शाासन शक्ति विरसे में नही, बल्कि अपने बल के आधार पर प्राप्त की होती है। एक (उदाहरणस्वरूप हिटलर के अधीन जर्मनी और मुसोलिनी के अधीन इटली या वर्तमान समय में उत्तर कोरिया)
कुलीनतंत्र
कुछ लोगों द्वारा किया जाने वाला शासन, प्राय: धनी वर्ग द्वारा। यह एक प्रकार का नियम है जहाँ पर एक विशिष्ट वर्ग के लोग शासन के कई पहलुओं पर शासन करते हैं (उदाहरणस्वरूप रंगभेदी शासन के तहत दक्षिण अफ्रीका)
अभिजाततंत्र
कुछ लोगों द्वारा किया गया शासन, इसमें विशेषता छोटे शासक वर्ग द्वारा शासन की बागडोर संभाली जाती है। (ऐसी शासन व्यवस्था का उदाहरण प्राचीन ग्रीस हो सकता है)
लोकतंत्र
जन सहमति द्वारा किया जाने वाला शासन (लोकतंत्र के उदाहरण के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका एवं भारत जैसे देश आते हैं)
सरकार द्वारा सत्ता के आधार पर शासनों को वर्गीकरण कर सकते हैं। जिस प्रकार से निम्नलिखित रूप में बताया गया है |
शासन का प्रकार
शक्ति व उसके निष्पादन से संबंधित
अधिनायकवादी
अधिनायकवाद एक सत्तावादी ढंग से शक्ति का प्रयोग करने का एक तरीका है। इसे अधिकार के अपमानजनक रवैये के रूप में भी समझा जाता है। इस शब्द का प्रयोग विशेष रूप से किसी देश या देश की सरकार की सत्तावादी व्यवस्था का वर्णन करने के लिए किया जाता है| जीवन और शासन के समस्त पहलुओं पर पूर्ण नियंत्रण का होना (उदाहरणस्वरूप सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ, ग्रेटर जर्मन रीच)
निरंकुश
ऐसा शासन भी बहुत नियंत्रित होता है, हालाँकि यह एक अधिनायकवादी शासन की अपेक्षा कम नियंत्रित है (नेपोलियन बोनापार्ट के अंतर्गत फ्रांसीसी साम्राज्य, पिनोशे के अंतर्गत चिली)
सत्तावादी
ऐसा शासन भी बहुत नियंत्रित होता है, हालाँकि यह एक अधिनायकवादी शासन से कम नियंत्रित होता है (उदाहरणस्वरूप चीन, जॉर्डन, तुर्की)
संवैधानिक
ऐसी शासन व्यवस्थाओं के अंतर्गत राज्य द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्ति की मात्रा संविधान में निर्धारित नियमों द्वारा नियंत्रित की जाती है एवं शक्ति के किसी भी दुरुपयोग को जाँच और संतुलन की प्रणाली द्वारा सुनिश्चित किया जाता है।
लोकतांत्रिक
ऐसी व्यवस्था में सत्ता का स्रोत जनता के पास होता है। जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि जनता की ओर से सत्ता का प्रयोग करने के लिए उत्तरदायी होते हैं। लोकतंत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में हो सकता है।
लोकलुभावनवाद
इस तरह के राजनीतिक आंदोलन/शासन लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं और अभिजात वर्ग के विरोध का प्रदर्शन करते हैं।
इन शासन करने वाले लोगों की संख्या और सत्ता के साथ उसके संबंधों के आधार पर विभिन्न प्रकार के मौजूदा शासनों को समझने के पश्चात् ही विशेष रूप से लोकतांत्रिक, सत्तावादी, अधिनायकवादी और लोकलुभावन शासनों की प्रकृति निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट की जा सकती है |
लोकतांत्रिक शासन : प्रकृति व विशेषताएँ
डेमोक्रेसी शब्द ग्रीक भाषा के शब्द के “डेमोस” से आया है, जिसका अर्थ होता है लोग। यह एक प्रकार से राजनीतिक शासन है, जहाँ पर सर्वोच्च शक्ति लोगों के पास निहित होती है। वास्तव में, लोकतंत्र के कुछ शुरुआती संदर्भ प्राचीन ग्रीस से मिलते हैं। उदाहरण के लिए, इनमें से कई प्राचीन यूनानी नगर-राज्यों में कुछ संस्थाएँ थीं जिनकी प्रकृति लोकतांत्रिक थीं। एथेंस में कुछ लोग अपने प्रतिनिधियों या अधिकारियों का चुनाव कर सकते थे, जिससे चयन करने का एक तत्त्व और एक ऐसी प्रणाली शामिल हुई, जहाँ पर बहुमत द्वारा शासन राजनीतिक प्रक्रिया का एक स्वीकार्य रूप था तथा इसे जनता द्वारा सामूहिक भागीदारी के स्तर का कारण माना जाता है | ये दोनों ही उदाहरण लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के चिन्ह को प्रदर्शित करते हैं। हालाँकि, उस समय का लोकतंत्र वर्तमान लोकतंत्र की प्रकृति की तरह नहीं था |
छठी ई.पू. तक, महाजनपदों के काल में कुछ लोग संघ व पंचायतों के माध्यम से अपनी भागीदारी का प्रयोग कर सकते थे। हालाँकि, उस समय के लोकतंत्र की प्रकृति और आज के आधुनिक लोकतंत्र की धारणा बदल गई है।
मध्यकाल में राजनीतिक शासन की प्रकृति यूरोप में हुई पुनर्जागरण जैसी घटनाओं और अंततः वेस्टफेलिया 1648 की संधि से अत्यंत प्रभावित थी, जिसने क्षेत्रीय संप्रभुता के साथ-साथ एक आधुनिक राज्य की धारणा को मौलिक पहलुओं को औपचारिक रूप प्रदान दिया। अंततः संयुक्त राज्य अमेरिका में कई अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाएँ जैसे कि बिल ऑफ राइट्स 1789 का पारित होना आदि लोकतांत्रिक आदर्शों के विकास हेतु एक ऐतिहासिक विकास था। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति ने भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण प्राचीन शासन को समाप्त करने के बाद संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई, यह माना जाता है कि इसने आधुनिक उदार लोकतंत्र के कुछ सबसे बुनियादी पहलुओं को सामने रखा।
बीसवीं शताब्दी लोकतांत्रिक शासन के उदय के संदर्भ में सबसे अंतिम अवधियों में से एक थी। मित्र राष्ट्रों की जीत के साथ ही प्रथम विश्वयुद्ध का प्रभाव एक ऐसा दौर था जब लोकतांत्रिक शासन को अधिक वैधता प्राप्त हुई। हालाँकि सत्तावादी शासन की वृद्धि तथा बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण युद्ध के बीच की अवधि एवं सहयोगियों की जीत के बीच की यह शांति अल्पकालिक थी। उदाहरण के लिए, जर्मनी में नाजीवाद और इटली में मुसोलिनी का उदय होना बीसवीं शताब्दी में सत्तावादी शासन के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं।
शीतयुद्ध की अवधि में भी एक ऐसा दौर देखा गया जब साम्यवादी और पूँजीवादी गुटों के बीच के संघर्ष ने कई देशों में राजनीतिक शासन की प्रकृति को प्रभावित किया। इसके अतिरिक्त भी अन्य राजनीतिक घटनाक्रमों जैसे कि सोवियत संघ में स्टालिनवाद की प्रसिद्धि का बढ़ना आदि यह दर्शाता है कि किस प्रकार से सतावादी राज्य की प्रकृति अधिनायकवादी बन गई।
शीतयुद्ध के बाद सोवियत संघ का विघटन, विउपनिवेशीकरण की प्रक्रिया एवं नागरिक अधिकार आंदोलनों ने गैर-लोकतांत्रिक शासनों के क्रमिक पत्तन को प्रभावित किया था। पूर्व उपनिवेशी देशों को युद्ध प्रयासों में सहयोग करने के बदले में कई शाही घरानों को राजनीतिक स्वायत्तता या संप्रभुता प्रदान करनी पड़ती थी। उदाहरण के तौर पर, भारत को स्वतंत्र करने का वादा इस शर्त पर किया गया था कि यदि भारत धुरी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध के प्रयासों में ब्रिटेन के साथ सहयोग करें। ये प्रतिनिधि सरकारें अधिक लोकप्रिय होने लगी थीं। आज भी विश्व के कई देशों ने अपने राजनीतिक शासन की प्रकृति से संबंधित परिवर्तन किए हैं। हालाँकि यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है कि सच्चे लोकतंत्र का होना एक दूर की संभावना है। इन निहित स्वार्थों और लोकलुभावन शासनों द्वारा लोकतंत्र के विनियोग ने एक लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के उद्देश्य का वास्तविक सार छीन लिया है।
जब हम आम भाषा में लोकतंत्र की बात करते हैं तो हम बहुमत के शासन को लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों में से एक मानते हैं, जिसका अर्थ है लोगों का शासन। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और मतदान अधिकार ही किसी भी लोकतांत्रिक शासन के मूल का गठन करते हैं। हालाँकि, बहुमत के शासन का स्वाभाविक रूप से यह अर्थ नहीं है कि कोई राज्य लोकतांत्रिक हो सकता है। एक सच्चे लोकतंत्र, विशेष रूप से विविध जातीय और धार्मिक संरचना वाले देशों में जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों की चिंताओं को सुनिश्चित करना आवश्यक होता है।
राजनीतिक बहुलवाद एक लोकतांत्रिक शासन के सबसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। आधुनिक लोकतंत्र में और विशेष रूप से एक जटिल सामाजिक संरचना तथा कई संस्थानों वाले राज्यों में, राजनीतिक बहुलवाद एक भली भाँति काम कर रहे लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बन जाता है। एक लोकतांत्रिक शासन की बुनियादी विशेषताओं में से एक है संघ, सूचना और संचार की स्वतंत्रता जिसके माध्यम से वरीयताओं का स्वतंत्र निरूपण होता है |
लोकतंत्र आमतौर पर अपने नागरिकों को कुछ अपरिहार्य अधिकारों की गारंटी देते हैं। इनमें भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता जैसे कुछ प्रमुख अधिकार हैं।
राजनीतिक स्वतंत्रता लोकतंत्र की एक अन्य प्रमुख विशेषता है जो कि नागरिक स्वतंत्रता, जन भागीदारी, मीडिया और प्रेस की स्वतंत्रता की उपस्थिति से चिह्नित है। इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नेताओं का चयन एक लोकतांत्रिक शासन की मुख्य विशेषताओं में से एक है |
कानून के समक्ष समानता और जाति, लिंग या धर्म के विभेद का अभाव व समान अवसर आधुनिक लोकतंत्रों की एक मूलभूत विशेषता होती है। लोकतंत्र के वास्तविक होने के लिए न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक क्षेत्रों में अवसरों की समानता होनी चाहिए।
इसके अंतर्गत आर्थिक स्वतंत्रता, पसंदीदा व्यवसाय करने का अधिकार और आर्थिक गतिविधियों पर पूर्ण राज्य नियंत्रण का अभाव भी उदार लोकतंत्र का हिस्सा रहा है।
यह बड़े पैमाने पर राजनीतिक लामबंदी आधुनिक लोकतंत्रों का एक मूलभूत पहलू है क्योंकि ये प्रतिनिधि शासन के उद्देश्यों के लिए चुनावों द्वारा आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं । चूंकि राजनीतिक भागीदारी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता हो सकती है, इसलिए इसे प्रायः नागरिक समाज के समूहों की उपस्थिति में चिह्नित किया जाता है।
लोकतांत्रिक शासन पूर्ण अधिकार या राजनीतिक स्वतंत्रता प्रदान नहीं करता है। प्रायः कई मामलों में, ये अधिकार प्रकृति में योग्य होते हैं लेकिन निरपेक्ष नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अन्य समुदायों की भावनाओं को आहत नहीं किया जा सकता है अथवा महिलाओं के विरुद्ध कोई भी अपमानजनक टिप्पणी नहीं की जा सकती है। यह भी सच है कि लोकतंत्र में कई बार इन प्रावधानों का अनुचित प्रयोग किया जाता है। एलन सियारॉफ़ , कुछ कारकों की पहचान करते है जो कि कुछ देशों को दूसरों की तुलना में अधिक लोकतांत्रिक बनाते हैं और इनमें से राजनीतिक बहुलवाद, आर्थिक विकास का स्तर, विकास की प्रकृति, सेना की भूमिका, जनसंख्या, एकरूपता, सामाजिक-सांस्कृतिक और क्षेत्रीय कारक भी हैं |
लोकतंत्र दो प्रकार का हो सकता है; प्रत्यक्ष लोकतंत्र और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोग अपने प्रतिनिधियों का प्रत्यक्ष रूप से चयन करते हैं और इसमें सीधे ही शासन किया जाता है, उदाहरण के लिए, स्विट्जरलैंड। दूसरी ओर, अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं, जिसे प्रायः प्रतिनिधियात्मक लोकतंत्र कहा जाता है। प्रतिनिधियात्मक लोकतंत्र में लोग अप्रत्यक्ष रूप से अपने नेताओं का चुनाव करते हैं और यह तब तक प्रभावी होता है जब तक कि शासित और सरकार के बीच में संबंध पूर्ण और विश्वसनीय रहते हैं | प्रतिनिधियात्मक लोकतंत्र मुख्यतः संसदीय, अध्यक्षीय, उदार और अनुदार भी हो सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में दलीय प्रणाली द्विदलीय एवं बहुदलीय भी हो सकती है।
भारत में लोकतंत्र का एक दलीय प्रभुत्व रूप भी है, जिसकी विशेषता स्वतंत्रता के तुरंत बाद के दिनों में दलीय प्रणाली का एक प्रमुख चरण है और इसमें समय के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों तथा गठबंधन की राजनीति का भी उदय हुआ। अमेरिकी प्रणाली में रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक के साथ द्विदलीय प्रणाली देखी जा सकती है। ब्रिटेन को एक बहुदलीय प्रणाली के रूप में वर्णित किया जा सकता है, हालाँकि 1920 के बाद से ब्रिटेन में दो प्रमुख दल लेबर पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी का राजनीति पर प्रभुत्व रहा है। हालाँकि एक-दलीय प्रणाली शुद्ध रूप से एक-दलीय प्रणाली के समान नहीं है, जो चीन के जनवादी गणराज्य जैसे देशों में देखने को मिलती है। एक दलीय प्रभुत्व वाली प्रणाली में एक ही दल अन्य दलों पर हावी रहता है जबकि एक शुद्ध प्रणाली की विशेषता एक दल का ही होना होता है, जो कि गैर-लोकतांत्रिक है |
जब हम इन राजनीतिक प्रणालियों के वास्तविक कामकाज को देखते हैं तो हम यह पातें हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले कुछ देशों में उतना लोकतंत्र विद्यमान नहीं हो सकता है जितना कि संविधान में निहित प्रतीत होता है। उदाहरण के तौर पर, लोकतंत्र के इर्द-गिर्द एक प्रमुख आलोचना अरस्तू द्वारा यह है कि लोकतंत्र को भीड़तंत्र का रूप समझने के अतिरिक्त, यह सरकार के कुलीन स्वरूप का एक रूप है जिसमें लोगों के लिए कुछ मामलों व स्थिति में कुछ नियम होते हैं।
सत्तावादी शासन : प्रकृति और विशेषताएँ
सत्तावादी शासन में सरकार की विशेष रूप से सत्ता पर मज़बूत कमान होती है, प्रायः इस प्रकार के शासन में सीमित राजनीतिक स्वतंत्रता नागरिकों को मिल पाती है। इस प्रकार के शासनों के अंतर्गत राजनीतिक अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता और राजनीतिक बहलवाद बहत सीमित होता है। साथ ही साथ राज्य के न्यायिक, कार्यकारी और विधायी कार्यों का अतिव्यापीकरण हो सकता है। आज भी कई सत्तावादी शासनों की लोकतांत्रिक प्रणाली में विशेषताएँ हो सकती हैं और एक लोकतांत्रिक प्रणाली में एक सत्तावादी शासन की विशेषताएँ हो सकती हैं। जैसा कि पहले चर्चा की गई थी कि इनमें से प्रत्येक शासन में भिन्नता हो सकती है और प्रायः अन्य शासनों की विशेषताओं के साथ अतिव्यापी हो सकती है, हालांकि राजनीतिक वैज्ञानिकों ने सत्तावादी शासनों को कुलीन या निरंकुश अथवा एक दलीय या सेना द्वारा शासन के रूप में वर्गीकृत किया है।
एलन सियारॉफ़ विभिन्न प्रकार के सत्तावादी शासनों को सूचीबद्ध करते हैं जो कि पारंपरिक, सैन्य, लोकतांत्रिक से लेकर चुनावी सत्तावाद तक हो सकते हैं। पारंपरिक सत्तावादी शासन वे हैं जो संरक्षक-ग्राहक संबंधों (Patron-client relationship) पर आधारित होते हैं। वहीं नौकरशाही सैन्य तंत्र (Bureaucratic military apparatus) वे हैं जो नौकरशाही ढाँचे के भीतर स्वयं को बनाए रखते हैं। प्रतिस्पर्धी सत्तावादी शासन (Competitive authoritarian regimes) वे शासन हैं जिनके पास लोकतांत्रिक संरचनाएँ हैं, लेकिन उनकी कार्यशैली सत्तावादी हैं। साथ ही साथ जैसा कि पिछले खंडों में चर्चा की गई कि सत्तावाद अपने चरम रूप में एक अधिनायकवादी राज्य का रूप ले लेता है। सत्तावादी शासन की कुछ मूलभूत विशेषताओं की चर्चा नीचे के भाग में की गई है।
सत्तावादी शासनों में एक बहत ही नियंत्रित शक्ति संरचना होती है; इसमें आमतौर पर एक केंद्रीकृत शक्ति संरचित होती है। यह केवल राजनीतिक शक्ति ही नहीं अपितु केंद्रीकृत भी है, यहाँ तक कि आर्थिक शक्ति भी अत्यधिक केंद्रीकृत हो सकती है। सत्तावादी शासन या गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था में, बहुत सारे नियम शासकों के ऊपर तय करने के लिए छोड़े जाते हैं न कि स्वतंत्र निकाय के तहत |
एक सत्तावादी शासन के मुख्य पहलुओं में से एक यह है कि इसमें राजनीतिक बहुलवाद का अभाव है। इस तरह के शासन में किसी भी विरोध या वैकल्पिक संस्थानों की उपस्थिति को समायोजित करने की भावना का अभाव होता है। ये सत्तावादी शासन विविध जातीय और धार्मिक संरचना के प्रति कम सहिष्णु होते हैं।
प्रायः यह देखा गया है कि ऐसे शासन हिंसा या दमन के प्रयोग पर टिके हुए होते हैं। राज्य के आदेशों का पालन न करने पर बहुत कठोर दंड दिया जा सकता है। गुप्त हत्याएं, गिरफ्तारियाँ इसकी एक सामान्य विशेषता बन जाती हैं, उदाहरण के लिए हिटलर के शासनकाल के दौरान नाजी जर्मनी मुख्य तौर से जासूसी व निगरानी रखने वाली प्रणाली पर आधारित था और इसमें प्रायः किसी भी विरोध या वैकल्पिक सोच को दबाने हेतू बल का सहारा लिया जाता था।
इसमें प्रायः एक राजनीतिक शक्ति द्वारा अनिश्चितकालीन शासन को चिह्नित किया जाता है, जो कि सत्ता के दुरुपयोग के माध्यम से अपनी स्थिति को बनाए रखता है। ऐसे नेता अक्सर सत्ता में आते हैं जो कि जरूरी नहीं जनता द्वारा चयनित हों या उसमें जनता की किसी भी प्रकार की सहमति शामिल हो, लेकिन अक्सर दमन एवं यहाँ तक कि लोकलुभावन प्रचार के माध्यम से ये शासक सत्ता के पदों पर कब्जा कर ही लेते हैं। ऐसे नेता जनसंचार माध्यमों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पूर्ण नियंत्रण के साथ ही झूठी सूचनाओं का प्रसार करके सत्ता में बने रहते हैं। इसलिए, नियंत्रित मीडिया और प्रेस की स्वतंत्रता ऐसे शासनों की एक और विशेषताओं में से एक है।
सत्तावादी शासन की विशेषता यह है कि इसमें नागरिक स्वतंत्रता को सीमित और नियंत्रित करने के प्रयास किए जाते हैं। कई सत्तावादी शासनों में बड़े पैमाने पर लामबंदी की कमी तथा राजनीतिक मामलों में जन भागीदारी में जनता के साथ क्रूर दमन और राज्य दमन का उपयोग किया जाता है जो कि इसकी एक प्रमुख विशेषता है।
इतिहास में कई सत्तावादी शासनों के उदाहरण देखने को मिलते हैं। हालाँकि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के साथ ही कई देश सतावादी से लोकतांत्रिक बन गए। जनता के साथ केवल बल प्रयोग या दमन जैसे कारक इस तरह के शासनों को सत्ता में रखने में सक्षम नहीं हैं हालाँकि यह भी एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है। उदाहरण के लिए, पोल पॉट को दो मिलियन कंबोडियाई लोगों की हत्या के बाद सत्ता से बाहर कर दिया गया था |
उपनिवेशवाद की समाप्ति, शीतयुद्ध की अंत, सोवियत संघ के पतन जैसे कारकों ने अन्य देशों को सत्तावादी शासन से दूर ले जाने के लिए उत्प्रेरक का काम किया। 2010 में अरब स्प्रिंग एक और घटना थी जो कि ट्यूनीशिया में शुरू हुई तथा लीबिया और मिस्र जैसे कई देशों तक फैल गई, जिसने सत्तावादी शासन को चुनौती दी। हालाँकि आज भी हमें कई सत्तावादी शासन विश्व के कुछ देशों में देखने को मिलता है जैसे कि उत्तर कोरिया और चीन में यह आज भी मौजूद है।
अधिनायकवादी शासन : प्रकृति और विशेषताएँ
लोगों के निजी और सार्वजनिक जीवन दोनों पर अत्यधिक राज्य नियंत्रण का होना अधिनायकवादी शासन की विशेषता है। आर. फाइन (2001) में कहा गया है कि यह आधुनिक तानाशाही का एक रूप है जिसमें राज्य की सत्ता एक ही पार्टी में केंद्रित होती है। राज्य लोगों के जीवन के लगभग हर पहलू पर अपना नियंत्रण रखता है, भय का भी उपयोग किया जाता है जो अक्सर खुफिया पुलिस सेवाओं की सहायता द्वारा किया जाता है और इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण रूप से एक आधिकारिक विचारधारा का उपयोग होता है जो कि कभीकभी अकाट्य होती है।
ऐतिहासिक रूप से, एक अधिनायकवादी राज्य की अवधारणा का बोध कई राजनीतिक विचारकों के लेखन द्वारा लगाया जा सकता है जिहोंने एक निरपेक्ष राज्य (Absolute state) के विचार का उल्लेख किया था। हालाँकि, अधिनायकवाद को काफी आधुनिक माना जाता है, जिसमें एडॉल्फ हिटलर के तहत जर्मनी के उदय का पता लगाया जा सकता है, मुसोलिनी के तहत इटली और स्टालिन के तहत सोवियत संघ भी इसका उदाहरण है। इस तरह के शासन के कुछ हालिया उदाहरण में से उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन हैं।
अधिनायकवादी शासन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण नियंत्रण का होना : अधिनायकवादी शासन नागरिकों के जीवन के अधिकांश पहलुओं को निर्धारित करने में राज्य की उपस्थिति में चिन्हित होता है। उदाहरण के लिए, ऐसे शासन न केवल राजनीतिक शासन और राजनीतिक अधिकारों की प्रकृति को निर्धारित करता है बल्कि अर्थव्यवस्था, शैक्षिक, सांस्कृतिक जीवन, नैतिकता और दृष्टिकोण पर भी पूर्ण नियंत्रित करता है।
एक दल में सत्ता का संकेंद्रण : अधिनायकवादी राज्यों की विशेषता यह होती है कि एक ही दल में राजनीतिक सत्ता का संकेंद्रण होता है। ऐसी प्रणाली में एक दल मजबूत वैचारिक आधार के साथ राजनीतिक व्यवस्था पर शासन करता है जो कि निर्विवाद है। यह विपक्ष की उपस्थिति और किसी वैकल्पिक राजनीतिक दल के अस्तित्व के प्रति सहिष्णुता नहीं दिखाता है। इसलिए, राज्य का दमन और हिंसा का उपयोग करना ऐसे शासनों की एक विशिष्ट विशेषता बन जाता है।
अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण: अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण एक अधिनायकवादी शासन की सबसे बुनियादी विशेषताओं में से एक है। अधिनायकवादी शासनों को संबंधित राज्य की अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण और आदेश द्वारा चिह्नित किया जाता है। राज्य सभी प्रमुख आर्थिक निर्णयों, नियोजन, वितरण और आर्थिक प्रतिस्पर्धा की प्रकृति को भी निर्धारित करता है। तत्कालीन सोवियत संघ में आर्थिक नियोजन का मॉडल एक ऐसा उदाहरण है जिसकी विशेषता एक बहुत ही कठोर प्रणाली थी।
जन निगरानी : चूँकि अधिनायकवादी राज्य जीवन के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। यह बड़े पैमाने पर निगरानी के उपयोग पर बहत अधिक निर्भर करता है। इस तरह के शासनों में खुफिया पुलिस सेवा, निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग और यहाँ तक कि एकाग्रता शिविरों (concentration camps) की उपस्थिति का होना आदि ही इसकी विशेषता है। नाजी जर्मनी को इतिहास में सबसे प्रमुख उदाहरणों में से एक माना जाता है जिसने जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए एक बहुत बड़े पैमाने पर निगरानी कार्यक्रम शुरू किया।
अभिव्यक्ति और आलोचना करने की स्वतंत्रता का दमन : एक अधिनायकवादी शासन की एक अन्य विशेषता भाषण और राय की स्वतंत्रता का अभाव है। ऐसे शासन में, सरकार के खिलाफ आलोचनाओं का भारी दमन के साथ जवाब दिया जाता है। राज्य का मीडिया, समाचार पत्रों पर नियंत्रण है और किसी भी सूचना के प्रसार पर भी नियंत्रित करता है। सूचना के अधिकांश स्रोत अक्सर राज्य नियंत्रित होते हैं और प्रचार के एक तरीके के रूप में कार्य करते हैं। प्रेस की सेंसरशिप ऐसी व्यवस्थाओं की एक सामान्य विशेषता है।
बल और हिंसा का प्रयोग : राज्य के कार्यों की आलोचना करने वाली किसी भी राय को दबाने के लिए हिंसा और बल का प्रयोग, इस तरह के शासन की एक और मौलिक विशेषता है। बल का प्रयोग अक्सर असंतोष को कुचलने, विरोध को दबाने और जनता की आज्ञाकारिता हासिल करने के लिए किया जाता है।
अधिनायकवादी और सत्तावादी शासन के बीच अंतर
जैसा कि हम उपरोक्त खंडों में देख सकते हैं कि बल का उपयोग, राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव, राजनीतिक शक्ति की एकाग्रता आदि जैसे कारक एक अधिनायकवादी शासन और साथ ही सत्तावादी शासन दोनों की ही अतिव्यापी विशेषताएँ हैं। फिर यहाँ यह प्रश्न उठता है कि अधिनायकवादी और सत्तावादी शासन में क्या अंतर है?
मौलिक विशेषताओं में से एक ओर एक अधिनायकवादी और एक सत्तावादी शासन के बीच का अंतर यह है कि एक अधिनायकवादी शासन जीवन के हर पहलू, सार्वजनिक और निजी दोनों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। यह न केवल राज्य के आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन को नियंत्रित करने का प्रयास करता है बल्कि राज्य द्वारा वांछित कुछ दृष्टिकोणों, विश्वासों और एक विशेष विचारधारा को आकार प्रदान करता है। दूसरी ओर, सत्तावादी शासन का होना, हालाँकि शक्ति की एक मजबूत एकाग्रता, बल के प्रयोग या स्वतंत्रता की कमी की विशेषता है, यह जीवन के हर पहलू को नियंत्रित करने का प्रयास नहीं कर पाता जैसा कि यह एक अधिनायकवादी शासन के तहत करता है। इसमें कुछ हद तक स्वतंत्रता भी है, हालाँकि किसी भी जवाबदेही की अनुपस्थिति में यह चिन्हित होता है।
लोकलुभावनवादी शासन : हाल ही के दिनों में देख सकते हैं कि इस शब्द का व्यापक रूप से एक निश्चित प्रकार के राजनेताओं और नेताओं को चिह्नित करने के लिए उपयोग किया जाने लगा है, जिनकी पहचान व्यापक जन अपील और प्रभावी आंकड़ों के रूप में की जाती है। ये लोकप्रिय हस्तियाँ प्रायः करिश्माई व्यक्तित्व की होती हैं और जनता को प्रभावित करने में सक्षम होती हैं। हालाँकि, हम जानते हैं कि अधिकांश नेता प्रभावशाली होते हैं और उनकी अपील का व्यापक प्रभाव होता है।
यह शब्द व्यापक रूप से विवादित है क्योंकि यह पूर्णत: प्रतिनिधित्व पर आधारित रहा तथा यह एक अलग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संदर्भ में विभिन्न प्रकार के आंदोलनों, विचारों और विश्वासों का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
क्रिस्टोबल और कल्टवासेर : लोकप्रिय संस्थागत दृष्टिकोण (Popular agency approach) मुख्य रूप से लोकलुभावनवाद को लोकतंत्र के भीतर लोगों को लामबंद करने के लिए एक सकारात्मक शक्ति के रूप में व्यक्त करता है।
लैक्लौअन दृष्टिकोण (Laclauan approach), यह लोकलुभावनवाद को एक मुक्ति की शक्ति के रूप में मानता है। यह इस धारणा पर आधारित है कि उदार लोकतंत्रों को कट्टरपंथी लोकतंत्रों में बदलने की आवश्यकता है और यह लोकलुभावनवाद है जो समाज के उपेक्षित वर्ग को शामिल करने के लिए परिवर्तन में लामबंदी को प्रेरित कर सकता है। एक अन्य दृष्टिकोण लोकलुभावनवाद को एक राजनीतिक रणनीति के रूप में बताता है, जो कि मजबूत करिश्माई नेताओं के उद्भव की विशेषता है जिनका जनता के साथ सीधा संबंध होता है। अंतिम दृष्टिकोण लोकलुभावनवाद को एक लोककथाओं (Folkloric) के रूप में बताता है जिसका उपयोग दलों एवं दलों के नेता जनता और मीडिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया करते हैं। इन विद्वानों का तर्क है कि इनमें से प्रत्येक दृष्टिकोण के अपने व्यक्तिगत गुण तथा दोष होते हैं।
लोकलुभावनवाद शब्द की एक ही परिभाषा देने में कई विरोधाभासों के बावजूद, इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ बताई जा सकती हैं
सर्वप्रथम, लोकलुभावनवाद को एक राजनीतिक आंदोलन या उन नेताओं के रूप में पहचाना गया है जो कि आम जनता एवं उनकी इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं। वे लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।
दूसरा, लोकलुभावन शासनों या आंदोलनों की सबसे बुनियादी विशेषताओं में से एक यह है कि लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने के लिए नेताओं के दावे सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश के मामले में अभिजात वर्ग या यहाँ तक की सत्ताधारी प्रतिष्ठान के खिलाफ भी इसे जोड़ा जाता है।
यह सबसे महत्त्वपूर्ण बात है जो कि हम महसूस करते हैं कि लोकप्रिय होना लोकलुभावन होने के समान नहीं होता है।
लोकलुभावनवाद एक आंदोलन या विश्वासों का एक समूह नहीं है। यह विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भो में निहितार्थ है। एशिया, यूरोप और अमेरिका में कई आंदोलनों को लोकलुभावन कहा गया है हालाँकि इनमें समानताएँ नहीं हो सकती हैं, उदाहरण के लिए कई दक्षिणपंथी दल लोकलुभावन हो सकते हैं, जबकि कई वामपंथी दल भी लोकलुभावन हो सकते हैं। वेनेजुएleला के राष्ट्रपति शावेज (Chavez), संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प, वामपंथी लोकलुभावन इवो मोरालेस (Evo Morales) की बोलीविया सरकार आदि इसके कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।
लोकलुभावनवाद को इसकी नकारात्मकता और सकारात्मकता के साथ पहचाना जाता है। उदाहरण के लिए, कई लोकलुभावनवादी नेताओं की पहचान अधूरे वादों के साथ की जाती है क्योंकि ऐसे वादे लोगों का ध्यान आकर्षित करने और समर्थन प्राप्त करने के लिए जल्दबाजी में किए जाते हैं। हालाँकि/ लोकलुभावनवाद को राजनीतिक तथा आर्थिक दोनों ही क्षेत्रों में निर्णय लेने हेतू प्रभावित करने में लोगों की भागीदारी के रूप में भी पहचाना जा सकता है, क्योंकि कई लोकलुभावन आंदोलन अक्सर जमीनी स्तर पर भी लामबंद होते हैं।;
निष्कर्ष –
अंत में, हमें यह समझने की आवश्यकता है कि शासन के प्रकारों के वर्गीकरण का कोई ठोस तरीका नहीं है। राजनीतिक वैज्ञानिकों ने शासक और शासित के बीच के संबंधों की प्रकृति, नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता तथा सरकार के विभिन्न अंगों के बीच के संबंधों के आधार पर शासनों का वर्गीकरण किया है।
इसके द्वारा हमने यह समझने का प्रयास किया है कि राजनीतिक शासनों को शासन करने वाले लोगों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि राजशाही, तानाशाही, अभिजात वर्ग, कलीनतंत्र से लोकतंत्र। हमने सत्तावादी, अधिनायकवादी, लोकतांत्रिक और लोकलुभावन शासनों की विशेषताओं पर भी चर्चा की। इन सभी पहलुओं में से सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू अधिनायकवादी एवं सतावादी शासनों के बीच का सूक्ष्म अंतर है जिसका हमें ध्यान रखना चाहिए, हालाँकि इन दोनों में समान विशेषताएँ भी हो सकती हैं।
विऔपनिवेशीकरण की प्रक्रिया के साथ ही एवं विशेष रूप से शीतयुद्ध के बाद कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में जटिल परिवर्तन की शुरुआत हुई। इसलिए इस वर्गीकरण में नई प्रक्रियाओं द्वारा विश्वभर की विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों के संदर्भ में अधिक सार्थक अध्ययन की एक आवश्यकता बन गई है।
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