Ticker

6/recent/ticker-posts

धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते है ? भारत में धर्मनिरपेक्षता पर विमर्शों की विवेचना कीजिये

धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते है ? भारत में धर्मनिरपेक्षता पर विमर्शों की विवेचना कीजिये | 

 धर्मनिरपेक्षता एक जटिल तथा गत्यात्मक अवधारणा है। इस अवधारणा का प्रयोग सर्वप्रथम यूरोप में किया गया।यह एक ऐसी विचारधारा है जिसमें धर्म और धर्म से संबंधित विचारों को इहलोक संबंधित मामलों से जान बूझकर दूर रखा जाता है अर्थात् तटस्थ रखा जाता है। धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा किसी विशेष धर्म को संरक्षण प्रदान करने से रोकती है।

भारत में इसका प्रयोग आज़ादी के बाद अनेक संदर्भो में देखा गया तथा समय-समय पर विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इसकी व्याख्या की गई है।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ:

  • धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य राजनीति या किसी गैर-धार्मिक मामले से धर्म को दूर रखे तथा सरकार धर्म के आधार पर किसी से भी कोई भेदभाव न करे।
  • धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी के धर्म का विरोध करना नहीं है बल्कि सभी को अपने धार्मिक विश्वासों एवं मान्यताओं को पूरी आज़ादी से मानने की छूट देता है।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य में उस व्यक्ति का भी सम्मान होता है जो किसी भी धर्म को नहीं मानता है।
  • धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में धर्म, व्यक्ति का नितांत निजी मामला है, जिसमे राज्य तब तक हस्तक्षेप नहीं करता जब तक कि विभिन्न धर्मों की मूल धारणाओं में आपस में टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो।

धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में संवैधानिक दृष्टिकोण:

  • भारतीय परिप्रेक्ष्य में संविधान के निर्माण के समय से ही इसमें धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा निहित थी जो सविधान के भाग-3 में वर्णित मौलिक अधिकारों में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद-25 से 28) से स्पष्ट होती है।
  • भारतीय संविधान में पुन: धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए 42 वें सविधान संशोधन अधिनयम, 1976 द्वारा इसकी प्रस्तावना में ‘पंथ निरपेक्षता’ शब्द को जोड़ा गया।
  • यहाँ पंथनिरपेक्ष का अर्थ है कि भारत सरकार धर्म के मामले में तटस्थ रहेगी। उसका अपना कोई धार्मिक पंथ नही होगा तथा देश में सभी नागरिकों को अपनी इच्छा के अनुसार धार्मिक उपासना का अधिकार होगा। भारत सरकार न तो किसी धार्मिक पंथ का पक्ष लेगी और न ही किसी धार्मिक पंथ का विरोध करेगी।
  • पंथनिरपेक्ष राज्य धर्म के आधार पर किसी नागरिक से भेदभाव न कर प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार करता है।
  • भारत का संविधान किसी धर्म विशेष से जुड़ा हुआ नहीं है।

धर्मनिरपेक्षता का सकारात्मक पक्ष:

  • धर्मनिरपेक्षता की भावना एक उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है जो ‘सर्वधर्म समभाव’ की भावना से परिचालित है।
  • धर्मनिरपेक्षता सभी को एकता के सूत्र में बाँधने का कार्य करती है।
  • इसमें किसी भी समुदाय का अन्य समुदायों पर वर्चस्व स्थापित नहीं होता है।
  • यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करती है तथा धर्म को राजनीति से पृथक करने का कार्य करती है।
  • धर्मनिरपेक्षता का लक्ष्य नैतिकता तथा मानव कल्याण को बढ़ावा देना है जो सभी धर्मों का मूल उद्देश्य भी है।

धर्मनिरपेक्षता का नकारात्मक पक्ष:

  • भारतीय परिप्रेक्ष्य में धर्मनिरपेक्षता को लेकर आरोप लगाया जाता है कि यह पश्चिम से आयातित है।अर्थात् इसकी जड़े/ उत्पत्ति ईसाइयत में खोजी जाती हैं।
  • धर्मनिरपेक्षता पर धर्म विरोधी होने का आक्षेप भी लगाया जाता है जो लोगों की धार्मिक पहचान के लिये खतरा उत्पन्न करती है।
  • भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता पर आरोप लगाया जाता है कि राज्य बहुसंख्यकों से प्रभावित होकर अल्पसंख्यकों के मामले में हस्तक्षेप करता है जो अल्पसंख्यकोंं के मन में यह शंका उत्पन्न करता है कि राज्य तुष्टीकरण की नीति को बढ़ावा देता है। ऐसी प्रवृत्तियाँ ही किसी समुदाय में साप्रदायिकता को बढ़ावा देती हैं।
  • धर्मनिरपेक्षता को कभी-कभी अति उत्पीड़नकारी रूप में भी देखा जाता है जो समुदायों/व्यक्तियों की धार्मिक स्वतंत्रता में अत्यधिक हस्तक्षेप करती है।
  • यह वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है।

धर्मनिरपेक्षता के समक्ष चुनौतियाँ:

भारत में हमेशा से धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा सार्वजानिक वाद-विवाद और परिचर्चाओं में मौजूद रहा है। एक तरफ जहाँ हर राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्ष होने की घोषणा करता है वही धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में कुछ पेचीदा मामले हमेशा चर्चाओं में बने रहते हैं जो समय-समय पर अनेक प्रकार की चिंताओं के साथ धर्मनिरपेक्षता के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न करते रहे जैसे-

  • वर्ष 1984 के दंगों में दिल्ली तथा देश के अन्य हिस्सों में लगभग 2700 से अधिक लोगों का मारा जाना।
  • वर्ष 1990 में हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी से अपना घर छोड़ने के लिये विवश करना।
  • वर्ष 1992-1993 के मुम्बई दंगे।
  • वर्ष 2003 में गुजरात के दंगे जिसमे मुस्लिम समुदाय के लगभग 1000 से अधिक लोग मारे गए।
  • गौहत्या रोकने की आड़ में धार्मिक और नस्लीय हमले।
  • नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) तथा नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न बिल (NRC) के खिलाफ देश भर में उत्पन्न विरोध एवं हिंसा इत्यादि।

उपरोक्त सभी उदाहरणों में किसी-न-किसी रूप में नागरिकों के एक समूह को बुनियादी ज़रूरतों से दूर रखा गया। परिणामस्वरूप भारत में धर्मनिरपेक्षता समय-समय पर धार्मिक कट्टरवाद, उग्रराष्ट्रवाद तथा तुष्टीकरण की नीति के कारण शंकाओं एवं विवादों में घिरी रहती है।

समाधान:

  • चूँकि धर्मनिरपेक्षता सविधान के मूल ढाँचे का अभिन्न अंग है अत:सरकारों को चाहिये कि वे इसका संरक्षण सुनिश्चित करें।
  • एस.आर.बोम्मई बनाम भारत गणराज्य मामलें में वर्ष 1994 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि अगर धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया गया तो सत्ताधारी दल का धर्म ही देश का धर्म बन जाएगा। अत: राजनीतिक दलों को सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय पर अमल करने की आवश्यकता है।
  • यूनिफार्म सिविल कोड यानी एक समान नागरिक सहिता जो धर्मनिरपेक्षता के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करती है, को मज़बूती से लागू करने की आवश्यकता है।
  • किसी भी धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत मामला है। अत: जनप्रतिनिधियों को चाहिये कि वे इसका प्रयोग वोट बैंक के रूप में करने से बचें।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता और पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता में अंतर

कभी-कभी यह कहा जाता है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की नकल भर है। लेकिन संविधान को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि ऐसा नहीं है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप से भिन्न है। जिसका जिक्र निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-

  • पश्चिम की पूर्णतया अलगाववादी नकारात्मक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा के विपरीत भारत की धर्मरिपेक्षता समग्र रूप से सभी धर्मों का सम्मान करने की संवैधानिक मान्यता पर आधारित है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म और राज्य के बीच संबंध विच्छेद पर बल नहीं देती है बल्कि अंतर-धार्मिक समानता पर जोर देती है।

धर्मनिरपेक्षता पर नेहरु के विचारः पंडित जवाहर लाल नेहरू ऐसा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र चाहते थे जो ‘सभी धर्मों की हिफाजत करे अन्य धर्मों की कीमत पर किसी एक धर्म की तरफदारी न करे और खुद किसी धर्म को राज्यधर्म के तौर पर स्वीकार न करे। नेहरु भारतीय धर्मनिरपेक्षता के दार्शनिक थे। नेहरु स्वयं किसी धर्म का अनुसरण नहीं करते थे। स्मरणीय हो कि ईश्वर में उनका विश्वास नहीं था, लेकिन उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब धर्म के प्रति विद्वेष नहीं था। इस अर्थ में नेहरु तुर्की के अतातुर्क से काफी भिन्न थे। साथ ही वे धर्म और राज्य के बीच पूर्ण संबंध विच्छेद के पक्ष में भी नहीं थे। उनके विचार के अनुसार, समाज में सुधार के लिए धर्मनिरपेक्ष राज्यसत्ता धर्म के मामले में हस्तक्षेप कर सकती है।

धर्मनिरपेक्षता पर गांधी जी के विचारः महात्मा गांधी निजी जीवन में धार्मिक व्यक्ति थे, वे धर्म और राजनीति के माध्य संबंधों को प्रमुखता देते थे। इस मामले में वे पंडित नेहरू से अलग मत रखते थे।

  • गौरतलब है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता ने अंतःधार्मिक और अंतर-धार्मिक वर्चस्व पर एक साथ ध्यान केंद्रित किया है। इसने हिंदुओं के अंदर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अंदर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किए जा सकने वाले खतरों का विरोध किया है, जो इसे पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा से भिन्न बनाती है।
  • यदि पश्चिम में कोई धार्मिक संस्था किसी समुदाय या महिला के लिए कोई निर्देश देती है तो सरकार और न्यायालय उस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। जबकि भारत में मंदिरों, मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश जैसे मुद्दों पर राज्य और न्यायालय दखल दे सकते हैं।
  • एक अन्य भिन्नता यह भी है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का संबंध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आबादी से भी है। इसके अंतर्गत हर आदमी को अपनी पसंद का जहाँ धर्म चुनने व मानने का अधिकार है, वहीं धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी खुद की संस्कृति और शैक्षिक संस्थाएँ कायम रखने का अधिकार दिया गया है।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार की गुंजाइश भी होती है और अनुकूलता भी, जो पश्चिम में देखने को नहीं मिलती है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगाया है, वहीं भारत राज्य ने बाल विवाह के उन्मूलन और अंतर्जातीय विवाह पर हिंदूधर्म के द्वारा लगाए निषेध को खत्म करने हेतु अनेक कानून भी बनाए हैं।
  • भारत में धर्मनिरपेक्षता के तहत गांधी जी की अवधारणा पर ज्यादा बल दिया गया है, जिसके अनुसार सभी धर्मों को समान और सकारात्मक रूप से प्रोत्साहित करने की बात की गई है।

इस प्रकार भारत की धर्मनिरपेक्षता न तो पूरी तरह धर्म के साथ जुड़ी है और न ही इससे पूरी तरह तटस्थ है। विदित हो कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद मामले में दिए अपने निर्णय में धर्मनिरपेक्षता को भारत की आधारभूत संरचना का हिस्सा माना है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने इन्हीं मूल्यों के आधार पर पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से सैद्धान्तिक रूप में भिन्न है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचना क्यों

भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने शुरूआती समय से ही तीखी आलोचनाओं का विषय रही है। जिसको लेकर कई तर्क भी दिए जाते रहे हैं। यहाँ हम उन चुनौतियो का जिक्र निम्न बिन्दुओ के अंतर्गत कर सकते हैं-

  • कुछ आलोचकों का तर्क है कि धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी है, लेकिन भारतीय धर्म निरपेक्षता धर्म विरोधी नहीं है। इसमें सभी धर्मों को उचित सम्मान दिया गया है। उल्लेखनीय है कि धर्म निरपेक्षता संस्थाबद्ध धार्मिक वर्चस्व का विरोध तो करती है लेकिन यह धर्म विरोधी होने का पर्याय नहीं है।
  • धर्म निरपेक्षता के विषय में यह भी कहा जाता है कि यह पश्चिम से आयातित है, अर्थात ईसाईयत से प्रेरित है, लेकिन यह सही आलोचना नहीं है। दरअसल भारत में धर्मनिरपेक्षता को प्राचीन काल से ही अपनी एक विशिष्ट पहचान रही है, यह कहीं से आयातित नहीं बल्कि मौलिक है।
  • भारत की धर्मनिरपेक्षता पर अल्पसंख्यक वाद होने का भी आरोप लगता रहा है। विदित हो कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक अधिकारों की पैरवी जरूर करती है मगर यह पैरवी न्याय के अनुसार होता है। ऐसे में अल्पसंख्यक अधिकारों को विशेष सुविधाओं के रूप में नहीं देखना चाहिए।
  • भारत में धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा संचालित होती है। अल्पसंख्यकों को शिकायत है कि राज्य को धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये। उल्लेखनीय है कि तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का यह कहना था कि सामाजिक सुधारों के नाम पर राज्य द्वारा निजी कानूनों में दखल दिया जा रहा है। वहीं जैन धर्मावलंबी अपनी संथारा प्रथा का बचाव उसके हजारों सालों से चले आने के आधार पर कर रहे हैं।
  • इसके आलावा यह भी आरोप लगाया जाता रहा है कि राज्य बहुसंख्यकों से प्रभावित होकर ही अल्पसंख्यकों के मामलों में दखल देता है। इसके विपरीत बहुसंख्यकों को यह संदेह होता है कि राज्य अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण कर रहा है। ऐसी प्रवृत्ति समुदायों में सांप्रदायिकता बढ़ाने का काम कर रही है।
  • धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठाती कुछ घटनाएँ भी इसके समक्ष चुनौती पेश करती रही हैं जैसे 1984 के दंगे, बाबरी मस्जिद का ध्वंस, वर्ष 1992-93 के मुंबई दंगे, गोधरा कांड और वर्ष 2003 के गुजरात दंगे, गौहत्या रोकने की आड़ में धार्मिक और नस्लीय हमले आदि।
  • नतीजतन भारत में धर्मनिरपेक्षता धार्मिक कट्टरवाद, उग्र राष्ट्रवाद तथा तुष्टिकरण की नीति के कारण खतरे में है।
  • कुछ आलोचकों का तर्क है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता उत्पीड़नकारी है। यह व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता में अधिक हस्तक्षेप करती है। जबकि ऐसा नहीं है, भारतीय धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप उत्पीड़नकारी नहीं बल्कि सुधारवादी है।
  • धर्मनिरपेक्षता शब्द हमारे संविधान में अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है जो इसके दुरुपयोग और इसे अपरिभाषित करने के लिये एक समुचित जगह प्रदान करता है। इस अर्थ में, समय-समय पर धर्मांतरण शब्द का भी दुरुपयोग और इसकी गलत व्याख्या की जाती रही है।
  • आलोचकों द्वारा एक अन्य तर्क यह भी दिया जाता है कि धर्मनिरपेक्षता वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है।
  • यूनिफॉर्म सिविल कोड धर्मनिरपेक्षता के समक्ष एक अन्य चुनौती पेश कर रही है दरअसल, यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता आज तक बहाल नहीं हो पाई है और एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के तौर पर यह देश की सबसे बड़ी चुनौती है।

धर्मनिरपेक्षता का महत्त्व

भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में एक अनूठी अवधारणा है जिसे भारतीय संस्कृति की विशेष आवश्यकताओं और विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए अपनाया गया है। इसके महत्व को निम्न बिन्दुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-

  • धर्मनिरपेक्षता समाज में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा तर्कवाद को प्रोत्साहित करता है और एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष राज्य का आधार बनाता है।
  • एक धर्मनिरपेक्ष राज्य धार्मिक दायित्वों से स्वतंत्र होता है सभी धर्मों के प्रति एक सहिष्णु रवैया अपनाता है।
  • व्यक्ति अपनी धार्मिक पहचान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है इसलिए वह किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह के हिंसापूर्ण व्यवहार के खिलाफ़  सुरक्षा प्राप्त करना चाहेगा। यह सुरक्षा सिर्फ धर्मनिरपेक्ष राज्य ही प्रदान कर सकता है।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य नास्तिकों के भी जीवन और संपत्ति की रक्षा करता है साथ ही उन्हें अपने तरीके की जीवन शैली और जीवन जीने का अधिकार भी प्रदान करता है।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य राजनैतिक दृष्टि से भी ज्यादा स्थायी होता है।
  • इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता एक सकारात्मक, क्रांतिकारी और व्यापक अवधारणा है जो विविधता को मजबूती प्रदान करता है।

Post a Comment

0 Comments